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न्यूनतम तीस हजार और अधिकतम एक लाख बीस हजार मतों से अवधेश राय को देंगे शिकस्त
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आप भी ग्राउंड रियलिटी को प्वाइंट वाइज समझ कर जरूर दें अपनी प्रतिक्रिया
समाचार विचार/बेगूसराय: बेगूसराय जिले के केशावे गांव के मूल निवासी अभिरंजन कुमार की गिनती देश के ज्वलंत मुद्दों के विश्लेषण के धनी, धीर गंभीर पत्रकार, लेखक, प्रखर वक्ता और टीवी पैनलिस्ट के रूप में होती है। हाल ही में दिवंगत पिताजी के श्रद्धांजलि सभा के अवसर पर वे राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न विधाओं के गणमान्य हस्तियों की मौजूदगी में जीवन जीवन रक्षक सीटीआर प्रणाली की उपयोगिता को समझते हुए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से एक भव्य कार्यक्रम का उल्लेखनीय आयोजन कर चर्चा में आए थे। देश के वर्तमान राजनीतिक हालातों पर सदैव मुखर रहने वाले अभिरंजन ने अपने एफबी वॉल पर बेगूसराय लोकसभा चुनाव पर केंद्रित एक पोस्ट लिखा है, जिसे हम आपके समक्ष हुबहू प्रस्तुत कर रहे हैं। आपकी प्रतिक्रिया का भी हमें इंतजार रहेगा।
बेगूसराय लोकसभा चुनाव में इस बार क्या हुआ?
बेगूसराय में तीन दिन बिताकर पक्ष-विपक्ष के सैकड़ों लोगों से हुई बातचीत के आधार पर ग्राउंड रियलिटी को समझने के बाद कुछ चीजें स्पष्ट हुईं। सबसे पहले उन कारकों के बारे में समझते हैं, जिनसे वर्तमान सांसद और भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह के सामने चुनौतियां पेश आईं।
1. बेगूसराय में गिरिराज सिंह के विरुद्ध पिछले दो तीन साल से योजनाबद्ध तरीके से लगातार एक कैम्पेन चलाया जा रहा था, जिसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से एक ऐसे राज्यसभा सांसद का समर्थन हासिल था, जो स्वयं लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। यद्यपि भाजपा के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, भाजपा या आरएसएस के किसी भी ज़िम्मेदार नेता द्वारा पिछले पांच साल में उन्हें कभी भी ऐसा आश्वासन या संकेत नहीं दिया गया था कि 2024 में बेगूसराय से उन्हें टिकट दिया जा सकता है, फिर भी न जाने क्यों राज्यसभा में होते हुए भी वे खुद को लोकसभा टिकट का स्वाभाविक हकदार माने बैठे थे और क्यों ऐसा ही संकेत उन्होंने अपने समर्थकों को भी दे रखा था। भाजपा और आरएसएस जैसे अनुशासित माने जाने वाले संगठन के अंदर यह एक दुर्लभ किस्म की घटना थी, जिसकी अपेक्षा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक को न थी। विश्वस्त सूत्रों ने तो मुझे यहां तक बताया कि उन्हें बीच में यह नसीहत भी दी गई थी कि अपनी टेरिटरी को छोड़कर दूसरे की टेरिटरी में अतिक्रमण न करे। मेरे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक, उन्हें देश में राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार और नैरेटिव की लड़ाई में भाजपा और आरएसएस को मजबूती प्रदान करने के मकसद से राज्यसभा में भेजा गया था, जो कि वास्तव में एक बहुत बड़ी और अत्यंत महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी थी। भाजपा और आरएसएस के अंदर इस बात को लेकर गहरी निराशा है कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी को भूलकर या छोड़कर वे एक अपेक्षाकृत छोटी लड़ाई में उलझ गए, जिसमें अपनी ही पार्टी के लोकसभा सांसद सह केंद्रीय मंत्री को डिस्टर्ब करके प्रकारांतर से अपनी ही पार्टी को नुकसान पहुंचाना शामिल था।
2. जैसा कि लगभग हर सांसद के साथ पांच साल में अमूमन ऐसा हो ही जाता है कि कुछ कार्यकर्ता उनके अधिक करीब पहुंच जाते हैं और इसी क्रम में अनेक कार्यकर्ता काफी दूर छूट जाते हैं। गिरिराज सिंह जैसे माहिर और चतुर राजनीतिज्ञ भी इस अप्रिय स्थिति से खुद को नहीं बचा सके। इसलिए स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग में गिरिराज जी की कोटरी की चर्चा रही और उन सबके लिए उपरोक्त राज्यसभा सांसद एक शक्ति केंद्र बन गए। ऐसे अनेक कार्यकर्ता चुनाव में या तो उदासीन हो गए या विपक्ष के प्रति उदार हो गए।
3. भाजपा से अलग पार्टियों के कुछ स्थानीय नेताओं ने भी अपनी भविष्य की राजनीति के मद्देनजर गिरिराज सिंह पर तीखे हमले किये, जिसमें गंभीरता न होने के कारण उसका असर बहुत ज़्यादा तो नहीं बताया जा रहा, लेकिन यह भी सच है कि गिरिराज सिंह इस परिस्थिति को ठीक से हैंडल नहीं कर सके। दरअसल, इस बार टिकट के एलान के बाद जैसे ही वो चुनाव लड़ने बेगूसराय आए, उनके ऊपर पार्टी और गठबंधन के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं की तरफ से अचानक ही इतने सारे हमले शुरू हो गए, जिसकी उन्हें कल्पना तक न थी, इसलिए उनकी तरफ से जैसी तैयारी दिखनी चाहिए थी, वैसी नहीं दिख सकी।
4. विपक्षी उम्मीदवार की तरफ से भी उन्हें मिल रही चुनौती इस बार पिछले चुनाव की तुलना में अधिक प्रभावी थी, क्योंकि पिछली बार बेगूसराय में विपक्ष जहां राजद और सीपीआई उम्मीदवारों के बीच बंटा हुआ था, वहीं इस बार पूरी तरह एकजुट था और उनके विरुद्ध मुख्य रूप से एक उम्मीदवार सीपीआई के अवधेश राय ही मैदान में थे।
5. विपक्ष ने साम्हो पुल, पेट्रोकेमिकल, दिनकर यूनिवर्सिटी, हवाई अड्डे समेत कई स्थानीय मुद्दों को भी जोर शोर से उठाया। यह आरोप भी लगाया कि पिछले पांच साल में कुछ काम नहीं हुआ, हालांकि ज़मीनी सच्चाई इस आरोप को पूरी तरह जस्टिफाई करती नहीं दिखी, क्योंकि बेगूसराय में बरौनी रिफाइनरी के विस्तार से लेकर फर्टिलाइजर को दोबारा चालू करने तक का काम हुआ है। थर्मल का भी विस्तार हुआ है। सड़क, बिजली की स्थिति में सुधार हुआ है। कई फ्लाईओवर भी बने हैं। नेशनल हाइवे भी फोर लेन हो चुका है। पेप्सी जैसी निजी कंपनियों के भी प्लांट लगे हैं।
6. गिरिराज सिंह पर यह आरोप भी लगाया गया कि वे लोगों के बीच सर्वसुलभ नहीं हैं, यद्यपि मुझे प्राप्त जानकारी के मुताबिक केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद बेगूसराय के पिछले पांच सांसदों की तुलना में किसी भी सांसद से वे अधिक सुलभ रहे हैं। असली दिक्कत यह हुई है कि यदि किसी गांव में वे एक मठाधीश के यहां चले गए, तो अन्य चार मठाधीश इसी कारण से उनसे नाराज़ हो गए। यदि मुझे उन्हें कोई सुझाव देना हो, तो मैं उन्हें यह सुझाव अवश्य दूंगा कि आगे से आप मठाधीशों की बजाय आम और समस्याग्रस्त लोगों से अधिक मिला करें, क्योंकि मठाधीश आपके पीठ पीछे राजनीति करेंगे, ज़रूरत पड़ी, तो पीठ में छुरा भी घोपेंगे, लेकिन आम और समस्याग्रस्त लोग हमेशा दुआएं ही देंगे। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को तो वैसे भी लोकल दागी-पागी मठाधीशों से दूर ही रहना चाहिए।
7. महंगाई के मुद्दे पर मध्य वर्ग में और बेरोजगारी के मुद्दे पर युवा वर्ग में मोदी सरकार के प्रति नाराज़गी का एक भाव सामान्य तौर पर समूचे बिहार में दिखाई देता है, जिसे राजद नेता तेजस्वी यादव की कुशल और आक्रामक रणनीति के कारण काफी मजबूती मिली है। बेगूसराय में भी ये मुद्दे कुछ हद तक चर्चा में रहे हैं।
8. बेगूसराय में इस बार पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 4% कम वोटिंग हुई। मेरे अनुमान और निष्कर्ष के मुताबिक, इनमें लगभग 3% कमी भाजपा के वोटरों के कारण और लगभग 1% कमी विपक्षी वोटरों की उदासीनता के कारण आयी है।
उपरोक्त 8 स्थितियों के कारण यह सच है कि गिरिराज सिंह के लिए इस बार का चुनाव 2019 के चुनाव जितना आसान तो नहीं रहा, लेकिन अनेक ऐसे कारक भी रहे, जो तमाम प्रतिकूलताओं पर भारी पड़ते दिखाई दिए।
1. बेगूसराय बीजेपी का मजबूत गढ़ है। यहां कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं से इस बार गिरिराज सिंह के सामने चाहे जो भी चुनौतियां पेश आईं, लेकिन भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक आम वोटर उनके साथ मजबूती से डटे रहे। उन्होंने चुपचाप कमल छाप पर वोट डाल दिया, चाहे उनके पास कोई कार्यकर्ता पहुंचा हो या नहीं पहुंचा हो।
2. लाभार्थी वर्ग आज भी भाजपा का मजबूत वोट बैंक बना हुआ है। खासकर महिला मतदाताओं में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश दोनों के लिए अपार समर्थन है। बेगूसराय में जीविका दीदियों के लगभग 3 लाख महिलाओं के विशाल समूह ने भी भाजपा को अच्छा सहारा दिया।
3. ज़्यादातर आम वोटर ऐसा नहीं मानते कि पिछले पांच साल में कुछ नहीं हुआ। वे मानते हैं कि बहुत कुछ होना बचा हुआ है, जिसे अगले पांच साल में पूरा किया जाना चाहिए, लेकिन पिछले पांच साल में जितना कुछ हुआ है, वह पिछले पांच सांसदों में से किसी के भी द्वारा किये गए कामों से काफी अधिक है।
4. गिरिराज सिंह बेगूसराय ही नहीं, देश भर में हिंदुत्व के एक बड़े नेता हैं और हिंदुत्व अभी भी देश भर में एक मुख्य ड्राइविंग फोर्स बना हुआ है, जिसका लाभ गिरिराज सिंह को निश्चित रूप से मिला है।
5. मौजूदा राजनीतिक स्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी का कोई विकल्प न देखकर बहुसंख्य लोग भावावेश में आकर उन्हें वोट न देने की गलती नहीं करना चाहते।
6. राम मंदिर निर्माण, धारा 370 हटाने, तीन तलाक खत्म करने जैसे असंभव समझे जाने वाले कार्यों को कर दिखाने के कारण मोदी की विश्वसनीयता कमोबेश आज भी बरकरार है और बड़ी संख्या में लोगों को लगता है कि अगर फिर से मोदी जी की सरकार बनी तो अगले पांच साल में और भी कई ऐतिहासिक कार्य होने वाले हैं।
7. किसी भी लोकसभा क्षेत्र में ऐसे लोगों की संख्या काफी कम होती है जो अपने सांसद से सीधे व्यक्तिगत हित की पूर्ति की अपेक्षा रखते हैं। विशाल वर्ग उन मतदाताओं का होता है जो मुद्दों के आधार पर अपनी पार्टी का चयन करते हैं और सरकार के प्रदर्शन के आधार पर अपना रुख तय करते हैं।
8. महत्वपूर्ण यह भी है कि कुछ मुद्दों पर निराशा अथवा हल्की नाराज़गी के बावजूद 2019 में भाजपा को वोट देने वाले अधिकांश लोग इसके साथ बने हुए हैं। भाजपा के लिए थोड़ी चुनौतियां मुख्य रूप से विपक्ष के एकजुट होने के कारण पैदा हुई हैं, न कि भाजपा का अपना समर्थन कम होने की वजह से।
सारी स्थितियों का विश्लेषण करने के बाद,13 मई के मतदान के पश्चात बेगूसराय में मुकम्मल तौर पर जो स्थिति बनती हुई दिखाई दी है, उसके मुताबिक, गिरिराज सिंह की जीत लगभग 1 लाख 20 हज़ार वोटों से हो सकती है, जो कि अत्यंत अनुकूल स्थिति में बढ़कर 2 लाख 10 हज़ार तक और अत्यंत प्रतिकूल स्थिति में गिरकर 30 हज़ार तक जा सकती है। इसमें जीत के मार्जिन का ऊपरी स्तर अथवा निचले स्तर तक पहुंच जाना एक दुर्लभ और अप्रत्याशित घटना होगी।
डिस्क्लेमर:
लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं का सम्मान करते हुए मेरी सहानुभूति दोनों मुख्य उम्मीदवारों भाजपा के गिरिराज सिंह और सीपीआई के अवधेश राय के प्रति समान है; और बेगूसराय का वोटर होने और इनमें से किसी एक को ही वोट दे सकने की विवशता के बावजूद मेरी शुभकामनाएं भी दोनों के लिए समान ही हैं। मैंने जो विश्लेषण प्रस्तुत किया है, वह मेरे विश्वस्त सूत्रों और बेगूसराय के आम लोगों से प्राप्त जानकारी के आधार पर है और आधिकारिक चुनाव परिणाम इससे इतर भी हो सकता है। मेरा मकसद बस इतना ही है कि आप लोगों के सामने बेगूसराय चुनाव की वह तस्वीर रख सकूं, जो मेरी समझ में आई। मेरा मकसद किसी की आलोचना या प्रशस्ति करना भी नहीं है। धन्यवाद।
Begusarai Locals
🎯बेगूसराय में टल गया बड़ा रेल हादसा: अगर मालगाड़ी खुल जाती तो लग जाता लाशों का अंबार
🎯अपने अपने चश्मे से जीत का दावा करने में जुटे हैं समर्थक
Author: समाचार विचार
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2 Responses
आपका आकलन बहुत सटीक है, बेगूसराय में इतना नज़दीकी मुकाबले की संभावनाएं नहीं थी,पर भाजपा के हीं हवा हवाई नेताओं ने अपनी पार्टी के खिलाफ माहौल बनाकर विपक्षी दलों को दिया था,फिर भी जमीनी कार्यकर्ताओं ने हरसंभव संघर्ष करके जीत के नजदीक पहुंचा दिया है।
बिलकुल सही कहा आपने। हालांकि 4 जून का सबों को बेसब्री से इंतजार है।