आखिर क्यों: अब पेड़ों पर नहीं मोबाइल के स्क्रीन पर होते हैं नीलकंठ के दर्शन

🎯सनातन संस्कृति में विजयादशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन को माना गया है शुभ

🎯इंटरनेशनल यूनियन कंजर्वेशन ऑफ नेचर के अनुसार विलुप्त होने के कगार पर है नीलकंठ पक्षी

नीलकंठ
समाचार विचार/बेगूसराय: आज विजयादशमी है। अन्य तीज त्यौहारों की तरह आज भी इष्ट मित्र, बंधु बांधव अपने स्वजनों और परिजनों को मोबाइल पर विजयादशमी की शुभकामनाएं दे रहे हैं। मोबाइल की गैलरी में गुगल से डाउनलोड कर प्रेषित की गई नीलकंठ पक्षियों की भरमार है, लेकिन अपने आसपास मौजूद पेड़ पौधों की टहनियों पर इस पक्षी के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। देवाधिदेव महादेव के प्रतिनिधि की उपाधि प्राप्त नीलकंठ पक्षी को खास कर विजयादशमी पर देखना शुभ माना जाता है। लेकिन अब यह खूबसूरत पक्षी लुप्त होने की कगार पर है। यही वजह है कि  इण्टरनेशनल यूनियन फार नेचर कन्जर्वेशन आफ नेचर (यूसीएन) ने नीलकंठ को तेजी से विलुप्त हो रहे वन्य प्राणियों में शामिल कर लिया है।
मानवीय क्रिया कलापों से नीलकंठ पर मंडराने लगे हैं संकट के बादल
भारत की सनातन संस्कृति में मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण का वध किया था। तभी से हमारे समाज में नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाने लगा। धर्मशास्त्रों में शिव को नीलकंठ कहा गया है। इसी से इस पक्षी को धरती पर भगवान शिव का प्रतिनिधि माना गया है। माना गया है कि इस खूबसूरत पक्षी का गला भी शिव की तरह नीला होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नीलकंठ पक्षी शुभ होने के साथ-साथ कृषकों का मित्र भी है। यह फसल को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को खाकर फसल की रक्षा करता है। इसका मुख्य आहार खेतों में फसल को नष्ट करने वाले कीड़े-मकोड़े, चूहे, बिच्छू, कीट-पतंग व फल हैं।

नीलकंठ

योजनाबद्ध तरीके से किया जा सकता है इस दुर्लभ पक्षी का संरक्षण
बाग बगीचों और खेत खलिहानों में सहज उपलब्ध रहने वाला नीलकंठ आज दुर्लभ प्रजाति का संरक्षित पक्षी है। फसलों में प्रयोग होने वाले कीटनाशक दवाओं ने नीलकंठ पक्षी की न सिर्फ प्रजनन क्षमता घटाई है बल्कि जलवायु परिवर्तन भी नीलकंठ पक्षी के विलुप्त होने का बड़ा कारण है। कीटनाशक दवाओं की चपेट में आने से मृत कीड़े मकोड़ों को खाकर नीलकंठ असमय काल कलवित हो रहे हैं।विलुप्त हो रहे नीलकंठ पक्षी को बचाने के लिए सरकार को कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनानी चाहिए। लोगों को भी इस दुर्लभ पक्षी की रक्षा के लिए आगे आने की जरूरत है। किसानों को विषैले कीटनाशक एवं रसायनिक खादों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। जैविक खाद व जैविक कीटनाशक के प्रयोग को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

दशहरा के दिन दर्शन मात्र से हो जाता है सनातनियों का कल्याण
पंडित बासुकीनाथ झा ने नीलकंठ पक्षी के धार्मिक महत्व के संबंध में बताया कि हिंदू धर्म में दहशरा पर्व के दिन दुर्लभ पक्षी नीलकंठ का दर्शन होना बहुत ही शुभ माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार श्रीराम को लंकेश रावण के वध से पहले भगवान शिव के स्वरूप नीलकंठ के दर्शन हुए थे। तभी से दशहरा यानी विजय दशमी के दिन दुर्लभ पक्षी के दर्शन से परिवार में बुरे दिन समाप्त होने की प्रथा मानी जाती है। श्री झा ने बताया कि विजयादशमी के दिन इस पक्षी के दर्शन मात्र से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वातावरण बन जाता है और सफलता का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

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