➡️एस्ट्रोनॉमिकल पोजीशन के अनुसार 19 जनवरी को सूर्य का होगा मकर में प्रवेश
➡️ग्रंथों में संशोधन करने की बजाय लकीर फेंटने में मगन हैं हमलोग
समाचार विचार/बेगूसराय: विजय सिंह ठकुराए से अगर आप परिचित नहीं हैं तो उनके फेसबुक पेज पर एक बार जरूर दस्तक दीजिए। साहित्यनुरागी और अन्वेषी प्रवृति के लेखक के संपूर्ण अस्तित्व को शब्दाकार देना संभव नहीं है। दर्जनाधिक पुस्तकों के लेखक सुशोभित लिखते हैं कि भारत के लोग किसी कारण से कोई त्योहार नहीं मनाते हैं। मनाना है इसलिए मनाते हैं। भेड़चाल है। मन बहल जाता है। टाइमपास होता है। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी ख़ूबी उसमें निहित मनोरंजन के साधन हैं। आप दुनिया का कोई भी धर्म उठाकर देख लीजिए, उसमें मनोरंजन, खाने-पीने, नाच-गाने, सजने-सॅंवरने, शोरगुल-धूम-धड़ाका करने के जितने अवसर हिन्दू धर्म देता है, उसका शतांश भी किसी और धर्म में नहीं है। अब्राहमिकों के तो साल में दो या तीन त्योहार आते हैं, वो भी रूखे-सूखे से। यही हाल बौद्धों, जैनों, सिखों का है। भारत देश की मजमेबाज़, तमाशबीन जनता और हिन्दू धर्म में गहरे तक धँसा भोगवाद- राम मिलाई जोड़ी है।
अब पढ़िए विजय सिंह ठकुराए की इस मुद्दे पर लिखी गई आई ओपनिंग आर्टिकल
अगर आप सच्चे धार्मिक हैं तो आज 14 जनवरी को उत्तरायण और मकर सक्रांति मनाई होगी। अच्छी बात है। पर अगर आप जिज्ञासु हों, सत्य के खोजी हों और सवाल पूछने से आपकी आस्था आहत न होती हो, तो यह मनन करिएगा कि – आज हमने उत्तरायण या मकर संक्रांति मनाई क्यों? जब इन दोनों में से एक भी चीज आज है ही नहीं। इंटरनेट की इन्फॉर्मेशन इंसान की बुद्धि कैसे भ्रष्ट कर सकती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखना हो तो नेट पर सर्च करिये कि – उत्तरायण और मकर सक्रांति कब है? तमाम एस्ट्रो पोर्टल्स और चैटजीपीटी तक आपको यही उत्तर देंगे कि – ये दोनों आज 14 जनवरी को हैं। शायद ही आपको कहीं यह पढ़ने को मिले कि वास्तविक एस्ट्रोनॉमिकल पोजीशन के अनुसार उत्तरायण बीते 22 दिसंबर को हो चुका है और सूर्य का मकर में प्रवेश 19-20 जनवरी को होगा। तो यह गड़बड़ हुई कैसे? पहले कई बार बता चुका हूँ। आज फिर संक्षेप में बता देता हूँ।
ग्रंथों में संशोधन करने की बजाय लकीर फेंटने में मगन हैं हमलोग
वर्तमान में मौजूद जितने भी पारंपरिक ज्योतिष या वैदिक खगोल के ग्रंथ जब लिखे जा रहे थे – यानी 1500 से 2000 साल पहले – उस समय सूर्य का उत्तरायण और मकर में प्रवेश एक ही तारीख को होता था। तब हमारे पूर्वजों ने भी सहज रूप से अपनी पुस्तकों में लिख दिया कि – सूर्य के मकर में प्रवेश के साथ उत्तरायण होता है। अब समस्या यह है कि उत्तरायण एक फिक्स घटना है, जो हर साल एक फिक्स दिन होती है। पर सूर्य का भिन्न-भिन्न राशियों में प्रवेश हर 72 साल में एक डिग्री खिसक जाता है। वजह – पृथ्वी की अक्षीय गति में एक लहराव है, जिस कारण पृथ्वी का नार्थ पोल एक फिक्स बिंदु का चक्कर लगा कर लगभग 25771.5 वर्ष में अपनी पूर्वस्थिति में वापस आता है। इस कारण साल दर साल नक्षत्रों की स्थिति एक फिक्स फ्रेम ऑफ रिफरेन्स से खिसक जाती है। वर्तमान में सूर्य का मकर में प्रवेश 19-20 जनवरी को होता है। तो हम 14 जनवरी को मकर संक्रांति क्यों मना रहे हैं? वो इसलिये क्योंकि सूर्य-सिद्धांत के अनुसार प्लेनेटरी पोजीशन में अंतर प्रति 66 साल में एक डिग्री का है, जबकि वास्तविक और सही अंतर 72 साल में एक डिग्री का। इस गड़बड़झाले को स्वीकार कर ग्रंथों में संशोधन करने की बजाय हम आज भी हजारों साल पुरानी लिखी बातों की लकीर फेटने में मगन हैं। और हो भी क्यों न? मयासुर द्वारा रचित और स्वयं सूर्य भगवान द्वारा प्रदत्त सूर्य-सिद्धांत के विरुद्ध कोई बात कह कर कोई ईशनिंदा का साहस भले करे तो कैसे करे? चलिए, आम धार्मिक जनता का क्या दोष। पर ये जो बड़े-बड़े खगोलाचार्य और ज्योतिषी बैठे हैं – इन्हें न ये पता कि उत्तरायण कब होता है। न इन्हें ये पता कि कब किस समय कौन से ग्रह एक्चुअल में किस राशि में है – पर बातें करेंगे व्यक्ति से लेकर ब्रह्मांड तक का भविष्य बता देने का। तमाम कारणों में ये भी एक कारण है – जिसकी वजह से मुझे ज्योतिष पर कभी यकीन न हुआ।
इन मसले पर ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड विद्वानों और बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया का स्वागत है।
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Author: समाचार विचार
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