बेगूसराय पहुंचे पद्मश्री डॉ. किरण सेठ ने कहा: एकाग्रता से ही छटेंगे विध्वंस के घनघोर बादल

  • 2022 से कश्मीर से शुरू की गई साईकिल यात्रा के दौरान भारद्वाज गुरुकुल में हुआ भव्य स्वागत

  • युवाओं के बीच भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ख्यातिलब्ध स्पिक मैके के फाउंडर हैं डॉ. किरण सेठ

बेगूसराय पहुंचे पद्मश्री डॉ. किरण सेठ ने कहा
समाचार विचार/बेगूसराय: बिहार की औद्योगिक राजधानी बेगूसराय पहुंचे डॉ. किरण सेठ ने कहा कि युवाओं में एकाग्रता से ही विध्वंस के बादल छटेंगे। गौरतलब हो कि युवाओं के बीच भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत ख्यातिलब्ध स्पिक मैके के संस्थापक एवं आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर एमेरिटस पद्मश्री प्रोफेसर डॉक्टर किरण सेठ वर्ष 2022 से कश्मीर से शुरू की गई अपनी साइकिल यात्रा के दरम्यान बेगूसराय के पन्हास में स्थित शिक्षण संस्थान भारद्वाज गुरुकुल पहुंचे, जहां विद्यालय प्रबंधन और उत्साह से लबरेज छात्र छात्राओं ने उनका गर्मजोशी के साथ भव्य स्वागत किया। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर वे सैकड़ों संस्थान में लाखों बच्चों एवं युवाओं तक इंडियन क्लासिकल म्यूजिक एंड कल्चर की जरूरत को बच्चों को समझा रहे हैं। विद्यालय परिसर में उनका स्वागत पांव पखार कर किया गया, साथ ही बच्चों ने उन्हें स्वनिर्मित वाद्य यंत्र का मॉडल भी प्रदान किया।

बेगूसराय पहुंचे पद्मश्री डॉ. किरण सेठ ने कहा

एकाग्रता की कमी से मानसिक रोगी बनती जा रही है युवा पीढ़ी
उन्होंने बताया कि हमारे आसपास सिर्फ सात प्रतिशत वस्तुएं ही मूर्त हैं। 93 प्रतिशत अमूर्त को जानने और उनका एहसास करने के लिए तीसरे नेत्र की जरूरत है, जिसे हम मन की शक्ति कहते हैं। यही स्पिक मैके का लोगो भी है। भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला एवं योग जैसे अमूर्त का ज्ञान हासिल करने का तरीका हमारे पूर्वजों ने सिखाया, लेकिन इसे हम तेजी से खोते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमूर्त के ज्ञान हासिल करने की उपेक्षा का दुष्परिणाम जग जाहिर है। कोविड से भी बड़ा पैंडेमिक अभी मानसिक रोग है।युवा नशा एवं आत्महत्या कर रहे हैं। मूल्यवान मानव संपदा का नुकसान बहुत ज़्यादा हो रहा है। स्पिक मैके का उद्देश्य सिर्फ कला का संरक्षण ही नहीं है बल्कि बच्चों एवं युवाओं के मानसिक क्षमता को भी बढ़ाना है। बच्चों का बंदर मन यहां वहां उछल कूद करता रहता है। एकाग्रता की घोर कमी है। धीरे धीरे यही बिखरा हुआ मन उसे खुद को समाप्त करने की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि एकाग्रता से ही विध्वंस के घनघोर बादल छटेंगे, जिसके लिए सामूहिक प्रयास की सख्त आवश्यकता है।

75 वर्ष की आयु में भी युवाओं के मन को संवारने में जुटे हैं डॉ. किरण सेठ
उन्होंने विद्यालय परिवार एवं बच्चों को सलाह दिया कि घंटी के जगह कुछ सेकंड के लिए दिन के प्रहरों के मुताबिक रिकॉर्डेड क्लासिकल म्यूजिक कुछ सेकंड के लिए ही बजा दें। दिन की शुरुआत क्लासिकल म्यूजिक पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर बजाकर करें।विभिन्न प्रहरों में बजने वाले राग के नाम पर बच्चों का उपनाम रखें और उन्हें अटेंडेंस में सप्ताह में किसी एक दिन उसी नाम से बुलाएं। भारतीय संगीत वाद्य यंत्र के नाम पर भवन या कोई भी सुविधा का नामकरण करें।इस तरीके से सारे बच्चों को इनकी जानकारी होगी। उन्होंने जनोपयोगी जानकारी साझा करते हुए कहा कि इइजी का उपयोग कर आईआईटी कानपुर में ब्रेन पर राग के असर का अध्ययन किया गया। भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी की रिकॉर्डेड प्रस्तुति सुबह में राग भैरव, दोपहर में राग मुल्तान एवं रात में राग भीम पलासी को सुनाने के बाद दिमाग पर बहुत गहरा अच्छा प्रभाव पड़ा। इसलिए सरकार ने हर संस्थान तक इसे फैलाना शुरू किया है। पूरे भारत में करीब 20 लाख संस्थाएं हैं, लेकिन स्पिक मैके सिर्फ पांच हजार संस्थान तक ही पहुंच पाई है। विदित हो कि इस अभियान को बल देने के लिए ही प्रोफेसर सेठ साइकल यात्रा पर निकले हुए हैं। 75 वर्ष की आयु में युवाओं के मन को संवारने का इनका प्रयास अदभुत है। श्री सेठ ने लोगों से अपील किया है कि अगर वे सादा जीवन उच्च विचार के रास्ते पर वापस नहीं आयेंगे तो पृथ्वी पर मानव का बचना बहुत मुश्किल है। कर्नाटक में जल की कमी के कारण एनआईटी को तत्काल बंद कर दिया गया है। विध्वंस की आहट के ऐसे ढेर सारे उदाहरण हैं। प्रोफेसर सेठ ने एकाग्रता बढ़ाने का योग भी सबों को सिखाया।

इन गणमान्यों की मौजूदगी में हुआ कार्यक्रम का सार्थक आयोजन
इस आयोजन में विद्यालय के सैकड़ों बच्चों समेत निदेशक शिवप्रकाश भारद्वाज, प्रोफेसर एस.के पाण्डेय, प्रोफेसर कुंदन कुमार, जवाहर लाल भारद्वाज, बृजबिहारी मिश्रा, धर्मेंद्र कुमार, अमिय कश्यप, राजा कुमार, सदानंद मिश्र, दामिनी मिश्र, रौशन कुमार, सुमित कुमार, रंजन कुमार, अनुपमा कुमारी, ऋषिकेश कुमार एवं पुरुषोत्तम कुमार सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे।

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