🎯आखिरकार हो ही गया एनडीए प्रत्याशी गिरिराज सिंह की फजीहत कराने वाले का खुलासा
🎯चमचेंद्र और कमीशेंद्र से विभूषित होने वाले इस महानुभाव की सार्वजनिक रूप हो रही है किरकिरी
समाचार विचार/बेगूसराय: सोशल मीडिया पर पूछ रहे हैं यूजर्स, यही हेडिंग पढ़कर आप कंटेंट को खंगालने की जिज्ञासा से यहां आए हैं न! अगर आप इन पंक्तियों तक पहुंच ही गए हैं तो, पहले हिंदी के बेहद प्रतिभाशाली युवा साहित्यकार सुशोभित की इन पंक्तियों को पढ़ ही लीजिए। फिर हम आगे मूल कथानक की ओर लौटेंगे। दरअसल सोशल मीडिया के अत्यंत लोकप्रिय प्लेटफार्म फ़ेसबुक को सोशल नेटवर्क के लिए बनाया गया था। दोस्ती गाँठना, तस्वीरें साझा करना और टीका-टिप्पणी, चर्चा-चकल्लस करना उसका मूल मक़सद था। वह विमर्श का नहीं, मन-बहलाव का माध्यम था। आपको लिखना है तो ब्लॉगर का इस्तेमाल कीजिए, वर्डप्रेस का इस्तेमाल कीजिए, पत्रिकाओं में लिखिये, पुस्तकें छपवाइये। किंतु यह फ़ेसबुक की परिकल्पना में निहित एक हाशिया था, जिस पर लेखक को लिखने का अवसर मिला। आरम्भ में यहाँ शब्द-संख्या थी, फिर वह हटा दी गई। फ़ेसबुक ब्लॉग का पर्याय बन गया। फ़ेसबुक का उद्भव और ब्लॉगिंग का पराभव इसीलिए एक साथ ही हुआ था। ठीक है, आप फ़ेसबुक पर लिखते हैं, लेकिन आपका पाठक कौन है? मीडिया की शब्दावली में बात करें तो जो कंटेंट आप जनरेट कर रहे हैं, उसका ‘कंज़्यूमर’ कौन है? यह ‘उपभोक्ता’ परम्परागत पाठक से बहुत भिन्न है। वह त्वरित प्रतिक्रिया देता है और इस जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में बड़े गड़बड़झाले करता है। पुराने समय में लेखकों को इस परिघटना की परिकल्पना भी नहीं थी कि आप लिखेंगे और उस पर त्वरित प्रतिक्रिया मिलेगी और ज़रूरी नहीं कि प्रतिक्रिया देने वाला उस विषय का विशेषज्ञ या उस विधा का रसिक हो ही, जिस पर आपने लिखा है। जो व्यक्ति किताब की दुकान पर जाकर पुस्तक ख़रीदता है, वह एक निर्णय लेता है। और पुस्तक को उलट-पुलटकर देखने के बाद ही निर्णय लेता है। वह पुस्तक में वित्तीय-निवेश तो करता ही है। लेकिन जो फ़ेसबुक पर भटकता हुआ आपकी पोस्ट पर चला आया है, वो किसी निर्णय से बाध्य नहीं है! वह कोई भी अफ़लातून हो सकता है और वह कमेंट-बॉक्स में कुछ भी लिख सकता है। ज़रूरी नहीं कि वह लेख को पूरा पढ़े ही, वह आरम्भिक दो पंक्तियों से अनुमान लगा लेता है और उसी के आधार पर टिप्पणी करता है। टिप्पणी अब नया लोक-व्यवहार और सामाजिक शिष्टाचार है। टिप्पणी करना ज़रूरी है। ‘अद्भुत’, ‘वाह’, ‘नि:शब्द’ तो टिप्पणीकार की जीभ पर रखे रहते हैं। ‘सहमत’ शब्द का इस्तेमाल वह यों करता है, मानो यह लेख नहीं जनमत-संग्रह हो! हमदर्दी जताना उसका शग़ल है। ‘ दस सेकंड की रील्स के इस दौर में दो सौ पन्ने की सौष्ठवपूर्ण और परिष्कृत पुस्तक को पढ़ने का पाठक से आग्रह जो लेखक करे, वही सच्चा और खरा है। क्योंकि उसने अपनी कला से समझौता नहीं किया है! खैर छोड़िए, उपरोक्त पंक्तियों को हृदयांकित करते हुए अब आप मूल कथानक की ओर लौटिए।
सोशल मीडिया पर पूछ रहे हैं यूजर्स: बेगूसराय भाजपा का कौन है ये बंदर और बैताल
लोकसभा चुनाव का मतगणना संपन्न होने के फेसबुक पर आरोपों प्रत्यारोपों के गर्म पोस्ट्स के बीच सुमित कुमार नाम के एक यूजर का एक पोस्ट बेगूसराय में खूब चर्चित हो रहा है। जनाब के पोस्ट को पढ़ने के बाद जिले की राजनीति में रुचि रखने वाले यूजर्स यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर बेगूसराय भाजपा का यह बंदर और बैताल कौन है? ये कमीशेंद्र और चमचेन्द्र कौन है? अगर आपको जानकारी है, तो कमेंट सेक्शन में जरूर बताइए। सुमित ने अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से सवालिया लहजे में पूछा है कि बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में जो व्यक्ति पूरे जिले में भाजपा उम्मीदवार की फजीहत कराने का सबसे बड़ा जिम्मेदार है, वो आजकल “बूथ बूथ कितने वोट” खेल रहा है। रहता खुद विश्वनाथ नगर में है, वोट की गिनती लोहियानगर की करवा रहा है। ये व्यक्ति एकमात्र जिम्मेदार है, जिसके कारण जिले में वोटिंग कम हुई। ये व्यक्ति एकमात्र जिम्मेदार है, जिसके कारण भाजपा प्रत्याशी की सर्वत्र हूटिंग हुई। भर चुनाव मंत्री जी ने मजबूरी वश ही सही, इसे पास फटकने नहीं दिया, पूरे चुनावी परिदृश्य से इसे गायब रखा गया। मगर कहते हैं ना बंदर कहीं गुलाटी मारना छोड़ता है भला! चुनाव से ठीक दो दिन पहले शाम में कमीशेंद्र प्रकट हुए और घोषणा कर दिया कि मैं ही चुनावी अभिकर्ता हूँ, इसके सोशल मीडिया पोस्ट का स्क्रीनशॉट आग की तरह तमाम लोगों में वायरल होने लगा। कुछ लोगों ने तो मुझसे भी कहा कि आप तो कहते थे कि मंत्री जी ने अब पिछलग्गूओं से पीछा छुड़ा लिया है, लेकिन ये तो बेताल की तरह फिर से पीठ पर सवार हो गया है। सुमित ने लिखा है कि उसी व्यक्ति के परिणामस्वरूप वोटिंग प्रतिशत कम हुआ। उसके लिए ये महाशय सबसे बड़े जिम्मेदार होते हुए भी बेशर्मी से दूसरों पर दोषारोपण करते रहे हैं और इनका प्रोपेगैंडा अनवरत जारी है। अरे महाराज, आप तो अधिकृत प्रतिनिधि होने का दावा करते थे, एकमात्र आपके गृह विधानसभा में ही क्यों मंत्री जी की हार हुई! क्यों पूरे लोकसभा क्षेत्र में वोटिंग प्रतिशत कम हुआ, मंत्री जी का वोट पाँच साल में 50 हजार जो कम हुआ, क्या आपकी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं थी? सच तो ये है कि ये वोट सिर्फ आपकी वजह से कम हुए। अभी आप बूथ बूथ खेल रहे हैं, 2020 के चुनावों के ऑकड़ों को दिखा दूँ तो आपकी हर कलई खुल जाएगी। उस समय आपके बूथ पर कितने वोट आए थे भाजपा को और अगर कम आए थे तो क्यों? क्या आप भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों को हराने की साजिश में शामिल थे? मान लिया जाए कि किसी समर्पित भाजपा कार्यकर्ता के बूथ पर दुर्भाग्यवश भाजपा को कम वोट आ जाए तो क्या आप उसे सार्वजनिक रूप से बेइज्जत करेंगे? क्या केरल, तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, बंगाल आदि के भाजपा कार्यकर्ताओं की कोई इज्ज़त नहीं है, उनके संघर्ष का कोई औचित्य नहीं है? महाराज, सवाल तो बहुत हैं लेकिन दूसरों को आइना दिखाने से पहले खुद का भी चेहरा एक बार जरूर देख लेना चाहिए, जिनके चेहरे पर खुद बदनामी की कालिख पुती हो, उनके द्वारा दूसरे को उपदेश देना शोभा नहीं देता।
नीचे दिए गए इन स्क्रीनशॉटस में दिख रही है यूजर्स की जिज्ञासा
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Author: समाचार विचार
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